डार्क नाइट - पार्ट 5

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अगले दिन का प्लेटाइम कबीर के लिए एक सुखद आश्चर्य लेकर आया। हालाँकि प्लेटाइम उसके लिए कुछ ख़ास प्लेटाइम नहीं हुआ करता था। हिकमा वाली घटना के बाद वह हर उस चीज़ से बचने की कोशिश करता था जो उसे किसी परेशानी या दिक्कत में डाल सके, यानि लगभग हर चीज़ से। उस दिन भी वह अकेले ही बैठा था कि उसे हिकमा दिखाई दी, मुस्कुराकर उसकी ओर देखते हुए। कबीर को हिकमा की मुस्कुराहट का राज़ समझ नहीं आया। उसे तो कबीर से नाराज़ होना चाहिए था, और नाराज़गी में मुस्कान कैसी? मगर उसकी मुस्कुराहट के बावज़ूद कबीर के लिए उससे नज़रें मिलाना कठिन था। उसने तुरंत पलकें झुकाईं और आँखें दूसरी ओर फेर लीं। या यूँ कहें कि पलकें अपने आप झुकीं और आँखें फिर गईं। मगर ऐसा होने पर उसे थोड़ा बुरा भी लगा। सभ्यता का तकाज़ा था कि जब हिकमा मुस्कुराकर देख रही थी तो एक मुस्कान कबीर को भी लौटानी चाहिए थी। मगर एक तो उसकी हिम्मत हिकमा से आँखें मिलाने की नहीं हो रही थी, दूसरा हिकमा के थप्पड़ की वजह से थोड़ी सी नाराज़गी उसे भी थी और तीसरा कूल का ऐटिटूड दिखाने का सुझाव।

अभी कबीर यह तय भी नहीं कर पाया था कि हिकमा की मुस्कुराहट का जवाब किस तरह दे कि उसे एक मीठी सी आवाज़ सुनाई दी, 'हाय कबीर!'

उसने नज़रें उठा कर देखा सामने हिकमा खड़ी थी। उसके होठों पर अपने आप एक मुस्कराहट आ गई और उस मुस्कराहट से निकल भी पड़ा, 'हाय!'

कबीर ने उठकर एक नज़र हिकमा के चेहरे को देखा, फिर नज़र भर कर देखा, मगर उसे समझ नहीं आया कि क्या कहे। थोड़ा संभलते हुए उसने कहा, 'सॉरी हिकमा..'

इतना सुनते ही हिकमा हँस पड़ी, 'इस बार तुमने मेरा नाम सही लिया है।'

हिकमा के हँसते ही कबीर के मन से थोड़ा बोझ उतर गया और साथ ही उतर गई उसकी बची-खुची नाराज़गी।

'आई एम सॉरी..' इस बार उसने हल्के मन से कहना चाहा।

'डोंट से सॉरी, मुझे पता है कि ग़लती तुम्हारी नहीं थी।' हिकमा ने अपनी मुस्कराहट बरकरार रखते हुए कहा।

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