डार्क नाइट - पार्ट 8

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कुछ दिनों बाद कबीर ने एक अजीब सा सपना देखा। सपने वैसे अजीब ही होते हैं। हमारे बाहरी यूनिवर्स में स्पेस-टाइम कर्वचर स्मूद होता होगा मगर सपनों के यूनिवर्स में स्पेस और टाइम नूडल्स की तरह उलझे होते हैं या फिर किसी रोलर कोस्टर की तरह ऊपर-नीचे आएँ-बाएँ दौड़ रहे होते हैं। कबीर के सपनों में एक ख़ास बात यह होती थी कि हालाँकि उसके दिन के सपने पूरे ग्लोब का चक्कर लगाने के थे मगर उसके रातों के सपनों में वड़ोदरा ही जमा हुआ था। लंदन तब तक उसके सपनों में घुसपैठ नहीं कर पाया था, हाँ लंदन वालों की घुसपैठ ज़रूर शुरू हो गई थी।

सपने में कबीर वड़ोदरा में डांडिया खेल रहा था। उसके साथ डांडिया खेल रही थी हिकमा। उसने हरे रंग का गुजराती स्टाइल का घाघरा-चोली पहना हुआ था। उसके बाल खुले हुए थे जिनकी बिखरी हुई लटें बार-बार उसके लाल गालों से टकरा रही थीं। डांडिया की धुन पर उसका छरहरा बदन खुल कर लहरा रहा था और उसके बदन की लय पर कबीर का मन थिरक रहा था। दोनों में अच्छा तालमेल था। वह शायद कबीर की ज़िन्दगी का सबसे खूबसूरत सपना था, या फिर उसके सपने को अभी और खूबसूरत होना था। अचानक डांडिया की टोली में उसे टीना दिखाई दी। टीना ने ठीक उस दिन की पार्टी की तरह ही काले रंग की मिनी स्कर्ट और उसके ऊपर क्रीम कलर का टॉप पहना हुआ था।

कबीर की नज़रें बार बार टीना की ओर जा रही थी और हिकमा को इसका अहसास हो रहा था। अचानक हिकमा ने कबीर से कहा, 'कबीर मुझे भूख लग रही है'

'क्या खाओगी?' कबीर ने टीना से नज़र हटा कर हिकमा से पूछा।

'जो भी तुम खिला दो। '

'बटाटा वड़ा?'

'हाँ चलेगा। '

कबीर और हिकमा वहाँ से हट कर बटाटा वड़ा की तलाश में निकल पड़े। रात काफ़ी हो चुकी थी। बहुत सी दुकानें बंद हो चुकी थीं। सड़क लगभग सुनसान थी। अचानक कबीर को अपने पीछे एक आवाज़ सुनाई दी, 'हे बटाटा वड़ा'

उसने मुड़ कर देखा। पीछे कूल और हैरी दिखाई दिए। कबीर ने मुँह फेर कर उन्हें नज़रअंदाज़ किया और हिकमा का हाथ थाम कर आगे बढ़ चला।

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