एक ख़ाहिश अधूरी सी

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कुछ ख्वाहिशों की बुनियाद
से है मेरी फ़रियाद,
क्यों कुछ खामोश सी रातों में
आती है आज भी उसकी याद।

वक़्त के साथ तो मैं चल पड़ा हूँ,
पर बीती हुई यादों में आज भी मैं खड़ा हूँ।
क्यों उसे पाने की ख़्वाहिश है मुझमे आज भी,
की वक़्त के साथ हर लम्हा कहे अभी।

क्यों है वो एक अधूरी ख़्वाहिश सी,
जिसके लिए मन तन्हा रहे अभी भी।
दिल से ये बात अक्सर ही निकलती है,
पर अधूरी ख्वाहिश आज भी पूरी नही हो सकती है।

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