रेशम-सी उसकी आँखें थी,
वक्त भी थम-सा गया था,
उसकी पलकों की चादर ओढे,
मानो खुद सोया बैठा था।मुस्कुराहट को उसके तो,
खुद जन्नत ढूंढा करती थी,
मानो उसकी खुशियों में,
खुद जन्नत होया करती थी।अकेला छोड़ दिया मुझको,
मैं रोज शिकवा करता था,
मगर मेरे ज़हन में वो,
यादों के बीज़ बोया करती थी।
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