कयामत

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टिप टिप टिप आ गिरी है बूंदे,
उनकी जुल्फों की बाहों में,
खुशी खुशी से कह रही है,
की ईद आई है बगानों में।

इक शरारा हुई!
उनकी पैनी निगाहों में,
चांद उस ईद का बन गई,
ये आंखें उनकी आसमानों में।

डरता था मैं इसी गजब से,
कही आ जाए ना फिजाओं में,
आखिर आ ही गई है खुद चलकर,
कयामत हमारे ज़मानों में।

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