बघनगरी

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कदमों की दूरी  पर थी वो,
फिर भी उस तक जाने को ,
कुछ क़दमों की कमी-सी थी,

कदम मेरे डगमगाये,
थोड़ी-सी कदमों के ही बाद,
इतने में उसकी कदमें,
दूर चले गए मझसे,

कुछ कदमों की जरुरत अभी भी थी,
पर इक कदम भी चल न सका,
शायद कदमों की जरूरत वो ही थी।

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