इस कश्मकश में थी वो,
की कैसे उतारे हमारे नशे को,
आंखे उनकी, तौबाह, तौबाह,
ढूंढती उस जवाब को,
नशा ही क्या उतरे भला,
जब उनकी आंखे ही शराब हो।बुरी आदत क्यू रखी है,
इस बात से उन्हें एतराज हो,
फिर पूछती उनकी अखियां,
जोर से इस गुलाम को,
अरे आदत ही क्या छूटे भला,
जब उनकी खूबसूरती ही हमारी दरगाह हो।