Chapter -4

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रोते रोते वो उठ कर तैयार हो गई बस अपने आंसू छुपा कर मां के निकाले हुए कपड़े पहन कर बेड पर बैठ गई !!

तभी मां एक हाथ में चाय की ट्रे पकड़े अंदर आई और बोली " ले अवनी ये ट्रे लेकर बाहर आ जा और सबको नमस्ते बोलना !!

अवनी ने रुआंसे मन से वो ट्रे पकड ली और मां के पीछे बाहर आंगन में आ गई,उसने मुंह नीचे ही रखा लेकिन उसने अंदाज़ा लगा लिया कि बाहर कितने लोग बैठे हैं उसने वो चाय की ट्रे बीच में पड़े टेबल पर रख दी ,तभी मां ने उसको वहीं पड़ी खाली कुर्सी पर बैठने को कहा !!

अवनी बिना सर ऊपर उठाएं कुर्सी पर बैठ गई !!

तभी मां ने सबको चाय डाल दी और बोली " ये हमारी बिटिया अवनी है सारा घर का काम जानती है पढ़ भी रही है अभी !

अवनी ने सुना दुसरी तरफ से एक औरत बोली शायद ये लडके की मां होगी " कालेज में भेजते हो पढ़ने को जो गांव से बाहर है !!

बाबूजी " हां बहन जी , हमारी बिटिया शुरू से पढ़ाई में बहुत तेज थी तो हमने सोचा और आगे पढ़ा देते हैं तो अच्छी नौकरी भी मिल जायेगी फिर लड़की काम करेगी तो घर में भी सहारा ही होगा !!!

लड़के की मां" नहीं नहीं भाईसाहब !! हम लोग लड़कियों की कमाई नहीं खाते , लड़कियां तो घर का चूल्हा चौका ही करें और अपने पति और सास ससुर की सेवा ही करें तो ही अच्छा रहता है ! अच्छे घर की लड़कियां बाहर कालेजों में नहीं जाती लड़कों के साथ पढ़ने !!

मां "कोई बात नहीं बहन जी अगर आप को लड़की पसंद है तो हम इसका कालेज जाना बंद करवा देंगे !!

लड़के की मां " ठीक है फिर!! ये हमारा लड़का है रणबीर ये बहुत पढ़ा लिखा है नौकरी भी करता है वही हमारे गांव के बैंक में लगा है !! और हमारी जमीन जायदाद भी बहुत है पूरे गांव में हमारा नाम है !! हमारे रणबीर को तो बहुत रिश्ते आते हैं लेकिन ये आपके देवर के बहुत कहने पर हम लड़की देखने आ गये !

बाबूजी " हां जी ये मेरे छोटे भाई है इनकी पत्नी का स्वर्गवास होने के बाद इन्होंने ने अपने दोनों बेटों को पाल पोस कर बड़ा किया मेरे दोनों बच्चों गौरव और अवनी की भी ये बहुत फ़िक्र करते हैं !

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