आखिरी रात

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वो रात आज भी मेरी आँखों के सामने है, जब आसमान पर काले बादलों का घना साया था, बादल की गरज के साथ तेज़ बारिश, मिट्टी की वो भीनी भीनी खुशबू। मैं, अपने कमरे की खिड़की के पास खड़ी बारिश को निहार रही थी, तभी तेज़ हवा के साथ बारिश की बौछारें मेरे चेहरे को छू रही थीं, इतना सुकून शायद कभी महसूस ही नहीं हुआ था। धीरे धीरे मेरी आंखें बंद होती गईं, कहीं खो सी गई मैं।

वास्तविकता से दूर कहीं कल्पना में थी मैं, कहीं अलग ही दुनिया में था मेरा दिमाग़। अचानक मेरे कमरे के दरवाजे खुलने की आवाज से मेरा ध्यान भटक गया और मैंने भुजी हुई शैली से पीछे मुढ़ कर देखा।

" कौन हो तुम लोग और यहां क्यों आए हो,और मेरा सामान?!!! मेरा सामान कहां लेकर जारहे हो? कोई मुझे बताएगा यहां हो क्या रहा है? कोई सुन क्यों नहीं रहा है" आश्चर्यजनक होकर मैंने पूंछा।

कुछ लोग मेरे कमरे का सारा सामान बाहर लेकर जारहे थे,

" मां! मां! मां ये मेरे कमरे का सामान क्यों लेकर जारहे हैं और कहां लेकर जारहे हैं? मां सुन क्यों नहीं रही हो? मुझे कुछ बता क्यूं नहीं रही हो??

मां ने भी मुझे अनदेखा कर दिया और बाहर चली गईं। वो काफी परेशान लग रहीं थीं, मैंने कई बार उनसे पूछा कि परेशान क्यों हो क्या हो गया है मुझे बताओ! पर न जाने क्यों जवाब ही नहीं देरही थीं, जवाब तो छोड़ें मेरी तरफ देख तक नहीं रहीं थीं। मैं अस्पष्ट हो कर कमरे से बाहर आ गई। कमरे के बाहर तो एक अजीब सा माहौल था, लोगों की भीड़, ऐसा लग रहा था मानो पूरा मोहल्ला घर में इकट्ठा हो गया हो। मेरी पहेली सुलझने की जगह और उलझती जा रही थी। मैं उधर उधर भागती रही, पूंछती रही सबसे आखिर वजह क्या है!? हुआ क्या है। पर मानो सबने एक चुप्पी सी साधली हो, बस सबके चेहरे पर एक मायूसी झलक रही थी, जो उनके बोलने से कही ज़्यादा थी। मैं थक हार कर एक कोने में बैठ गई और कर भी क्या सकती थी। मेरे बराबर में दो औरतें कुछ फुस फुसाहट कर रहीं थीं, मैं थोड़ी उनके करीब जाके सुन ने की कोशिश करने लगी। उनकी बातों से इतना समझ आगया था कि यहां किसी की मौत हुई है, मौत नही शायद किसी ने आत्महत्या की है।।

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