Chapter 15

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नारी तुम केवल वस्त्र नहीं,
नारी तुम केवल सजीव काया नहीं
तुम हो धरा का अभिमान,
तुम हो सृष्टि का सम्मान

तुममें है शक्ति शिवा की,
तुममें है ममता पार्वती की
तुमसे है संसार का सृजन,
तुमसे ही है प्रेम का वंदन

जिस समाज ने तुम्हें दासी समझा,
वो समाज फिर कैसे तरसता?
जिसने तुम्हारे सपनों को कुचला,
वो समाज फिर कैसे उन्नति करता?

तुम्हारे बिना ये धरा सूनी है,
तुम्हारे बिना हर आस अधूरी है
तुम्हारी पीड़ा से कोई अनजानरहे,
तुम्हारे आँसू बेअसरबहे

जो तुमसे छीनने की कोशिश करे सम्मान,
उससे छीन लो उसकी पहचान
तुम हो दुर्गा, तुम हो काली,
तुमसे ही हो दुनिया हर्षित और प्याली

झुको, न टूटो, न थमो तुम,
इस दुनिया को अपनी शक्ति का एहसास दिलाओ तुम
हर आंख में चमक हो तुम्हारे सपनों की,
हर दिल में धड़कन हो तुम्हारे हक़ की

नारी तुम केवल शब्द नहीं,
नारी तुम केवल सजीव काया नहीं
तुम हो वो रचना, जो सृष्टि को सजाती,
तुम हो वो ज्योति, जो हर अंधकार मिटाती

Rajput's (Completed ✓)Where stories live. Discover now