● आखिर कब तक ●

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सुनहरी किरणें मुझ पर गिर रही हैं...
और मैं, तुम्हारे सपनो को सुन सकता हूँ...
क्या, तुम भी इसी तरह महसूस करते हो ?
जिस तरह से, मैं करता हूँ ...

काश ! काश, हम इसे ऐसा ही छोंड देते...
क्योंकि सबसे खूबसूरत तो इसमें डूबना है...
तुम चाहे जो कहो, पर ये प्यार है...

कोशिश करूँगा, तुमसे दूरी मिटा सकूँ...
जो दिल में हैं, बता सकूँ...
मेरी आँखें तुमसे इज़हार करती हैं...
पर तुम हो कि सुन ही नहीं रहे हो...

आखिर, हम कब तक ऐसा करेंगे...
कब तक एक-दुसरे को अनसुना करेंगे...
कब तक, आखिर कब तक ?
बस, अब रहने दो, अब जाने दो...

जब तुम मेरे बहुत करीब होते हो...
मुझे साँस लेने में भी तकलीफ होती है...
मैं डरता हूँ, जैसे तुम मुझे देखते हो...

जब तक मैं तुम्हे जान पाता...
मेरी सारी टूटी धड़कने...
या जो कुछ भी मैं था...
तुम्हे सब दे चुका था...
अब मैं इंतज़ार कर रहा हूँ...
कि कब तुम मेरे लिए आओगे...
और तुम उसे बचाना चाहते हो...
जो कभी हमारे बीच था...

आखिर तुम कब तक इसे प्यार कहोगे ?
कब तक, आखिर कब तक ?
बस, अब रहने दो, अब जाने दो...

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नवनीत कुमार।
©® 2016
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