क्या देखा ज़माने ने तुझमे आलिम कि तुझे गुमान हुआ
गिर गया तू उनकी नजरो से जब से ना-फरमान हुआ...एक बात बता मेरी शोहबत से तुझे क्या हासिल हुआ
मैं तो बदनाम था, सो था, तू भी बदनाम हुआ...यूँ तो अकेले ही काफ़िया पढ़ा करता था महफ़िल में
आज तू भी नज्में पढने आया तो एहसान हुआ...हां, तेरे आने से मेरी एक नाकस शाम का नुक्सान हुआ
जा गुल-ए-गुलिश्तां, शाम का ये जाम भी तेरे नाम हुआ...अपनी जुम्बिश का असर देख, इंकलाबी सारा जहान हुआ
अर्जमन्द तेरी इसी अदा पर तो ये आसिम कुर्बान हुआ...ज़माने को अभी ज़माना लगेगा ये बात समझने में, ‘नवनीत’
कि जब मैंने आसमां को आसमां कहा तब वो आसमां हुआ...____________________________________
नवनीत कुमार ।
©® 2016
सर्वाधिकार सुरक्षित ।।
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