● ए दिल सुधर जा जरा ●

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ए दिल,
सुधर जा ज़रा...
ये जो तू बुनता रहता है,
अक्सर तन्हाईयों में,
मुझसे छुपा कर,
बिना बता कर ,
गहराइयों में,
ये सब
वक्त की बरबादियाँ हैं........
ए दिल,
सुधर जा ज़रा...
ये जो फितूर
तुझमे उमड़ता है,
घुमड़-घुमड़ के...
मुझे बहकाता है...
बदहाल तो, मैं होता हूँ,
साले, तेरा क्या जाता है...
तेरी कौम फितरती है,
तेरा मजहब फरेबी...
तू, मुझे चलाता है ?
ए दिल,
सुधर जा ज़रा...
तेरी शैतानियों से,
बदगुमानियों से,
मैं वाकिफ हूँ...
ये मुझे फंसाती हैं,
उलझाती हैं,
मुझसे गुनाह कराती हैं...
ए दिल,
सुधर जा ज़रा...
ये...ये जो तेरा झांसा है,
मीठा सा,
मख-मल सा...
ये जो तेरा रवैया है,
गैर-जिम्मेदाराना सा,
ढुल-मुल सा...
फ़िज़ूल है...
ए दिल,
सुधर जा ज़रा...
आखिर अपना भी कोई
उसूल है ....

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नवनीत कुमार ।
©®2016
सर्वाधिकार सुरक्षित ।।

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