● फितरत ●

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फितरत ही अलग है हमारी, हम ऐसे ही जिया करते हैं।
कुछ फैसले जिन्दगी के, सिक्के उछालके किया करते हैं।
मुहब्बत में तकाजे करना, हमारे बस की बात नहीं।
भला, मुहब्बत में भी कभी हिसाब किया करते हैं।

हम उनमे से नहीं, जो गलती पर परदा किया करते हैं।
गुनाह अगर करते हैं, तो कबूल भी किया करते हैं।
इश्क में मतलबी होना, हमारे बस की बात नहीं।
सब जानते हैं, हम जो करते हैं, डूब के किया करते हैं।

जिन्दगी ताश बन जाये, तो पत्ते खोल दिया करते हैं।
रास्ता ही तकदीर बन जाये, तो नया मोड़ लिया करते हैं।
हाथ की लकीरें मिटाना, हमारे बस की बात नहीं।
कभी-कभी सब कुछ किस्मत पर छोंड दिया करते हैं।

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नवनीत कुमार ।
©® 2016
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