साल गुजरते गये...
मैं बढ़ता गया...
वक्त गुजरता रहा...
दिल धड़कता रहा...
लोग बढ़ते गये...
मैं पीछे रह गया...
लोग हँसते रहे...
मैं मुस्कराता रहा...
गम कमाता रहा...
ख़ुशी लुटाता रहा...
धागे सा उलझता गया...
आटे सा पिसता गया...
अपनी कश्ती में ही-
छेद बनाता रहा...
कारवाँ बढ़ता गया...
लोग जुड़ते रहे...
मैं थम गया...
साँसे चलती रही...
ख्वाहिशें मरती गयी...
मैं कथा सुनाता रहा...लोग हँसते रहे...
मैं मुस्कराता रहा....____________________________________
नवनीत कुमार ।
©® 2016
सर्वाधिकार सुरक्षित ।।
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