विरह

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हे सखी!
आओ विरह के गीत गाएं
न्यौछावर जिन पर ह्रृदय सुकुमल
बंधन स्नेह का जिनसे प्रतिपल
प्रिये वह 'निर्मम', वीरगति पाए
आओ विरह के गीत गाएं।

समग्र जीवन, अनूठा बंधन
मातृभूमि को नित नियमित वंदन
अहं व स्व भाव से उठकर
भेंट की जिन्हें ह्रृदय स्पंदन
मिल सभी उसका तिलक लगाएं
आओ विरह के गीत गाएं।

अति मोहित मनुष्य देशभाव से
विरक्त घर व खेत-गांव से
जकड़े वज्र स्नेहपाश से
अभिन्न शत्रुओं के कुठाराघात से
सहज सम्मुख रण शीश नवाए
आओ विरह के गीत गाएं।

सफल रणभूमि, सफल उनका प्रयत्न
जीतें प्रतिपल जो मौत से रण
बलिदान के श्रेष्ठ भाव से
कर राष्ट्र को खुद समर्पण
सन्मुख उनके हम शीश नवाएं
आओ विरह के गीत गाएं।

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