आए दिनकर!
अहो अद्भुत लालिमा छायी
श्याम नभ को भेद मानो
केशरिया ध्वज है फहरायी।बीती निशा का घोर अंधेरा
रश्मियों से सुसज्जित सवेरा
पूर्व रथ में चले दिवाकर
हुआ गतिमान जग, था जो ठहराहो आनंदित खग-विहग चहके
इतराती डालियों संग पुष्प-मुकुल महके
बहती सरिता के अंचल में
अगणित मनोहर माणिक चमके
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परिकल्पना
Poetryप्रस्तुत रचना एक कवि के उस स्वाभाव को दर्शाती हुई लिखी गयी है जिसमे कवि को दुनिया की कुरीतियों का वर्णन करना पसंद नहीं अपितु खूबियों को दिखाने की सनक है. हालाँकि भूले भटके अगर कुरीतियों का वर्णन हो जाये तो वह निर्मम तरीके से अपनी बात रखता है. आशा है...