आए दिनकर

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आए दिनकर!
अहो अद्भुत लालिमा छायी
श्याम नभ को भेद मानो
केशरिया ध्वज है फहरायी।

बीती निशा का घोर अंधेरा
रश्मियों​ से सुसज्जित सवेरा
पूर्व रथ में चले दिवाकर
हुआ गतिमान जग, था जो ठहरा

हो आनंदित खग-विहग चहके
इतराती डालियों संग पुष्प-मुकुल महके
बहती सरिता के अंचल में
अगणित मनोहर माणिक चमके

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