अगर वक़्त यहीं थम जाता !
रूठों को हम यूँ मना पाते
सहज असहज को कर जाते
अगणित मीत हर पथ के
बरबस अंक हम लग जाते
उत्तर हर प्रश्न का मिल पाता
अगर वक़्त यहीं थम जाता |होता उचित अनुचित का भान तभी
सहज सुलभ होते कार्य सभी
अद्विग्न निरर्थक आकुल मन में
संचित होती इक आस नयी
सरस स्नेह की समृद्धि पाता
अगर वक्त यहीं थम जाता।अद्भुत नियति हैं अद्भुत पल
करो प्रयत्न कितना पर जाते फिसल
अतीत बना वक्त वर्तमान का
चेते हमें बनने को संबल
सुधि वर्तमान में जीने की लाता
अगर वक्त यहीं थम जाताहुआ ज्ञान निरर्थक थी
चाहत वक्त का यूं थम जाना
पल एक बदलने को
अगणित पल का बदल जाना
तो अगर वक्त यहीं थम जाता
मैं बरबस उसे चला आता
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परिकल्पना
Poetryप्रस्तुत रचना एक कवि के उस स्वाभाव को दर्शाती हुई लिखी गयी है जिसमे कवि को दुनिया की कुरीतियों का वर्णन करना पसंद नहीं अपितु खूबियों को दिखाने की सनक है. हालाँकि भूले भटके अगर कुरीतियों का वर्णन हो जाये तो वह निर्मम तरीके से अपनी बात रखता है. आशा है...