एक कश्ती छोटी सी
सागर में उसने उतारी थी
एक कल्पना अपने मन की
मुसाफ़िर ने सच करनी चाही थीमिली बहुत सी चुनौतियाँ
कठिनाइयाँ भी ढेरों थी
ना हारने का जज़्बा लेकर
टकराई वो लहरों से थीबादल बरसा, सागर उमड़ा,
जी-जान से किया मुक़ाबला
किंतु क्या करता मुसाफ़िर बेचारा
छोटी सी थी उसकी नौकाछोटी सी थी कश्ती उसकी
फिर भी झूझती रही लहरों से वो,
पर आया फिर एक तूफान भयानक
जो ले डूबा उसकी नैया कोनौका थी वो छोटी सी,
मुसाफ़िर का था वो एक सपना प्यारा
सागर रूपी इस जीवन में,
मुसाफ़िर ने तो सब कुछ हाराआज हार गया मुसाफ़िर लेकिन
कल उसे फिर उठना है
जीवन के इस सागर को अब
तैर कर ही सही, पर पार करना हैतूफान आएँगे बहुत से,
हाँ, चोट लगने का भी खतरा है
लेकिन चलना होगा संघर्श के पथ पर
मज़बूत यदि उसे बनना हैतो क्या अगर डूब गई नौका उसकी
हिम्मत नहीं उसे हारनी है
जीवन-सागर होगा पार,
उम्मीद की डोर अगर थामी हैA/N: This poem is inspired from an amazingly written poem by an awesome poet MisterAugust. Go and check out his work!
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Khayalon Ke Parindey
PoetryChalte chalte in raahon pe Kai khayal yu hi aate hai Kuch dil me bas jaate hai To kuch parindey ban ud jate hai Kai khayal hasate hai Kai khayal rulate hai Kuch baarish ki tarah mehkate hai To kuch bhavandar jaga jaate hai Jo khayal hame bikherte ha...