बचपन की बातेँ

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कैसा प्यारा था बचपन हमारा

हंसना- रोना, लड़ना -झगड़ना

सब कुछ बेमतलब बेमानी

बड़ों के समझाने पर हैरानी !

भूख लगी रो रोकर मांग लिया

नींद लगी ,माँ के आँचल में छिपा लिया

न कोई मान ,न सम्मान न फिकर

न पाप का पता न पुण्य की जरूरत

बस समझ आती माँ की सूरत

वो बिना बोले सब सुनती थी

बिना मांगे सब देतीं थीं

दामन खुशियों से भर देती

पता न चला बचपन कब बीता

कब धीरे-धीरे सब कुछ बदला

बचपन की बातें बचपना लगीं

पाप -पुण्य की समझ आने लगी

पाने को मनचाही मंजिल कुछ -कुछ बेईमानी करी

थोड़ा -थोड़ा थकने पर माँ की याद सताने लगी

जीवन छोटा लगा इच्छायें बड़ी

फिर भी हिम्मत राह दिखाती रही

जीवन बदल रहा था ,रातें रौशन थीं

भुला कर अतीत अपना आगे बढ़ती रही

धीरे -धीरे जिंदगी बदली ,आयाम बदले

पीछे छोड़ बचपन की बातें,नई नई मंजिलें चुनने लगी

अपनी की गलतियां बचपना लगी

पर अकसर रातों में जमीर कचोटती रही

एक लम्बा सफर तय कर ,पाया है वो मुकाम

वहाँ से देख सकती हूँ साफ

कुछ -कुछ खोकर काफ़ी है मेरे पास

अतीत की भूलें भी ली हैं सुधार

बीते जीवन का कोई निशान बाकी नहीं रहा

फिर भी न जाने क्यों?

दिल में कोई कोना धीरे -धीरे रीत रहा

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⏰ पिछला अद्यतन: Nov 16, 2014 ⏰

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