ज़िंदगी से मिले आज हम,
उसके हाथ में चाय की एक प्याली थी
संग मेरे कॉफ़ी की यारी थी,
बैठे थे हम वृक्ष की छाया में
बात कर रहे थे हम मौन काया में,
सिर्फ चुस्कियों की मद्दम मधुर आवाज थी
और मौन की आड़ में,
अनकहे लफ़्ज़ों ने बाज़ी मारी थी।
घण्टों बीत गए एक-दूजे के साथ में
पर फिर भी कुछ हम न कह सकें अपने अंदाज में,
दिन ढला, शाम उतरी,
घड़ी ने भी अब राह तकी,
हम उठ के चल दिये अपने-अपने राह पर
कुछ बात तो न हुई, पर
फिर भी दिल को कुछ हल्का महसूस कर।–वृंदा मिश्रा
(Vrinda Mishra)
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काव्यांश (KAAVYANSH) BY VRINDA
PoetryA collection of Hindi Poetries by Vrinda Mishra