यूँ ही तो नहीं.....।

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बेवजह तो नहीं

यूँ मेरा तुम्हारे लिए

काव्य-सृजन करना,

अपनी हर पंक्ति में

तुम्हारा अक्षर कहीं छिपाना,

यूँ ही तो नहीं

मेरे हर मौन में

तुम्हारा नाम जपना,

राधा-रानी न सही

पर कृष्ण की मीरा

बनने की मंशा रखना,

यूँ ही तो नहीं

मेरा चुप रहना

और तुम्हारी चुप्पी के

हर अक्षर को कंठस्थ करना,

यूँ ही तो नहीं

हमारा किनारे-सा साथ चलना

पर किसी भी मोड़ पर नहीं मिलना।

वृंदा मिश्रा

(VRINDA MISHRA)

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