हाँ और न के बीच में
असमंजस की उलझी लड़ी है
इस उलझन में कहीं
ज़िंदगी भी फंसी है,
हाँ और न कि
खिंचा-तानी में
समय की अपनी गति है,
वक़्त की नदी
कब निश्चय के पतवार के लिए
थमी है?
थम जाता है व्यक्ति
विचारों की उलझी डोरी में
कहीं भावनाएँ सुलगती हैं
तो कहीं मेधा पुकारती है,
और संसार के शोर में
सत्य और मार्गदर्शन वाली
आत्मा की आवाज़ ही
दब जाती है।
–वृंदा मिश्रा
(VRINDA MISHRA)
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काव्यांश (KAAVYANSH) BY VRINDA
PoetryA collection of Hindi Poetries by Vrinda Mishra