एक कोना.....

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एक कोना मेरा भी
मेरे नाम लिख दो,
हर कर्ण है तुम्हारा
तो इक छोटा टुकड़ा
मुझको भी दे दो,
ज़्यादा नहीं माँगती हूँ
बस चाहिए एक कोना
जो हो अपना,
जहाँ हो सपनों की वर्षा
और बहती हो छोटी-छोटी
उम्मीदों की गंगा,
सागर की चाह नहीं
बस चाहिए कुछ बूँदें
अपने हक़ की,
लिए अधिकार सभी तुमने
तो क्यों न दे दो
अपने होने का हक़ मुझे भी?

वृंदा मिश्रा
(VRINDA MISHRA)

काव्यांश (KAAVYANSH) BY VRINDAजहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें