मुझको देखो

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मुझको देखो
मेरी इस छोटी दुनिया में
संजोई गई है जो
काँच की भावनाओं में;
ज़रा संभालना,
कहीं गिर न जाए!
तीखी नज़रों से बचाना
कहीं उनमें बसी
ईर्ष्या की तलवार से
यह नष्ट न हो जाए,
दूर रखना इसे
अपनी क्रोधाग्नि से
कहीं यह दुनिया जल न जाए;
कहती नहीं हूँ मैं यह सब स्वमं के लिए
यह तो फ़िक्र है तुम्हारी मुझे
कहीं चूर-चूर शीशों की नोक
तुम्हें छलनी न कर जाए।

काव्यांश (KAAVYANSH) BY VRINDAजहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें