आँसू

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एक आँसू बोल पड़ा
पीड़ा के मेघ के भार तले
वह आँसू बरस पड़ा,
कब तक चुप रहता वह
एक रात यूँ ही, बरबस
तड़प उठा, मचलने लगा
और फिर तकिए को
अपने दर्द के रंग में रंगने लगा,
कहा कुछ नहीं, पर
कह गया सब उसका मौन
आखिर आँसू कब है देखता
शब्दों का रास्ता,
अभिव्यक्त करने को अपनी
पीड़ा की वृहदता,
और यूँ ही एक रात
वह बोल पड़ा
शब्द-शून्य पीड़ा की टीस पर
अंतिम-श्वास-सा डोल पड़ा।

वृंदा मिश्रा
(VRINDA MISHRA)

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