नारी हूं

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नारी हूं अभिलाषाओं की मारी हूं,
हर पल अपनी पहचान खोजती हूं।
बेटी हूं, बहन हूं ,पत्नी हूं, मां हूं,
इन सबके बीच अपना मुकाम ढूंढती हूं।।

चूड़ी, बिंदी, कपड़े, गहने
भाते हैं मुझको सारे,
दर्पण देखती,इतराती हूं।
पर पति की एक मुस्कान में,
अपने सौंदर्य का बखान ढूंढती हूं।।

लूट खसोट, दंगे फसाद कहीं चोरी और चकारी,
चारों ओर फैला हुआ है,बेईमानी और कालाबाजारी। अंधकार में प्रकाश ढूंढती हूं,
नारी हूं अभिलाषाओं की मारी हूं,
हर पल अपनी पहचान ढूंढती हूं।।

बुराई और बेईमानी का
परिंदा भी,ना मार सके पर,
आने वाली पीढ़ी के लिए।
ऐसा सुरक्षित आसमान खोजती हूं ,
नारी हूं, अभिलाषाओं की मारी हूं,
हर पल अपनी पहचान ढूंढती हूं।।

नारी हूं ,कमजोर मत समझना,
कभी दुर्गा, कभी काली हूं।
हर दुष्ट पापी महिषासुर का,
संहार सोचती हूं।।

नारी हूं, लाचार मत समझना,
हर जीत पर अपना अधिकार सोचती हूं।
नारी हूं,अभिलाषाओं की मारी हूं,
हर पल अपनी पहचान ढूंढती हूं।।

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