बस..थोड़ा सा और सबर

34 4 3
                                    

बहारें फिर से छायेंगी , चमन फिर मुस्कुराएगा । भंवरा फिर से आके ,फूलों का रस चुराएगा ।
यह मंजर भी , ये कैसा मंजर है ,
यह तो बस , यूं हीं बीत जाएगा ।
हवायें फिर से लहराएंगी,
फिजा में खुशबू छाएगी ।
वह शाखों के पत्ते ,
खुशी में झूम जाएंगे ।
सूरज की किरणें फिर से , नई रोशनी लाऐंगी ।
उम्मीदों का दामन बस रखना , कस के पकड़ ,
बस ... थोड़ा सा और सबर ।

मेरी कविताएं मेरे एहसास......जहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें