तेरी थीं बहुत यादें

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तेरी थी बहुत यादें
कभी इस कोने मिलती
कभी उस छोर टकराती
मुझे कभी रुलाती
कभी अतीत की बेचैनियों
में छोड़ जाती

झूठा नही था अपना प्यार
ये मुझको हर बार याद दिलाती
छोड़ उनको अब मैं कहाँ जाती
हिस्सा ज़िन्दगी का ये कहलाती
दर्द की आहटें बस रह जाती
जब ये कभी दस्तक दे जातीं

तुम क्यों थे हर उस कोने में
इन सवालों से मुझे बरसाती
यूँ ही कभी भी चली आती
जैसे पीली धूप वाले नीले आसमान में
काली घटाओं की झड़ी छाती
और रौशनी थोड़ी बुझ जाती

तेरी यादें अब सबक बन
सीने में बस चुभ जाती
खुशियों में हाथ जाने से
हर पल जैसे रोक लाती
और तेरे उन चुभते लफ़्ज़ों
के शोर में फिर कहीं खो जातीं

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