आओ बैठो

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आओ बैठो एक गुफ़्तगू करते हैं
साथ बिताए लम्हो की
फिर एक नई लहर बुनते हैं
यूँ बैठो मेरे सामने
की एक दूसरे को देख
आज फिर जी भरते हैं
आओ बैठो एक गुफ़्तगू करते हैं

सालों तुमको देख सुन
उन किताबों के पन्नो से
मन भर लिया
आज बैठो मेरे सामने
ज़रा छूने दो एहसासों को
उनसे फिर गुज़रते हैं
आओ ज़रा रूबरू नज़रें पढ़ते हैं

आओ बैठो एक गुफ़्तगू करते हैं

अरसों हुये मिले बिन
जीवन गया बरसों बीत
कैसे बिताये ये दिन
कैसे न टूटी जग की रीत
आओ फिर मिलो मेरे सब्रों से
उन्हें फिर परखते हैं
आओ ज़रा एक दूसरे से उलझते हैं

आओ एक बार फिर बैठ के
आमने सामने एक और
गुफ़्तगू करते हैं
कुछ नए पुलिंदे बुन
एक और किताब लिखते हैं
आओ बैठो ज़िन्दगी फिर पढ़ते हैं।

आओ बैठो एक गुफ़्तगू करते हैं।

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