कल्पना है तू मनुष्य या देवता।

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हवा का तू जुनून है
गहराइयों में बह रहा
अग्नि का सुकून है
तू आसमाँ में जल रहा
धरा का तू फूल है
तन्हाइयों में खिल रहा
खुशबुओं की धूल है
तू हर छटा में मिल रहा
तेरी बिसात अनंत है
तू हर कण में बह रहा
तुझे कौन ललकारेगा
है तेरा परचम प्रबल यहां
युद्ध की तू गूंज है
निशा में गरज रहा
आज़ादी की कूच है
तू हर दिशा में कह रहा
एक आस तू अटूट है
जो मन मे है पल रहा
विश्वास कूट कूट है
तू लहू में बह रहा
तू है परिंदा काल का
जो समय में न बंध सका
तेरी हस्ती भी अमिट है
तू चित्रकार इस सृष्टि का
तू कल्पना की खोज है
या है ज्ञान अमर आराध्य मनुष्य का।

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