अनकहे अल्फ़ाज़

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कभी पीछे मुरकर तो देखो
आवाज़ लगाने को अब ये लब बोल पडे है
इन बहते अश्क़ों से पूछो
आज भी तन्हा उन यादों के बीच खडे है

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