महताब ओढ़े है तारों की चादर
आसमान में कोई ख़लिश तो हैवो देखता है ख़्वाब परवाज़ के
परिंदे को कहिं कोई बंदिश तो हैमेरी आवाज़ अब वो नहीं सुनती
ममता के साथ कोई रंज़िश तो हैतारा कोई टूटकर बिखर रहा है
अधूरी कुछ मेरी भी ख्वाइश तो हैगाह आधा गाह पूरा मैं जलता रहा
खुदा सब तेरी ही आज़माइश तो हैGuys I would love to get your feedback.So do comment how you liked it or how I can improve my writing.
_riti
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अनकहे अल्फ़ाज़
PoetryHave you ever felt that anxiousness whlie trying to sleep? A constant buzzing in your ears.,mind whispering ? conspiring for a future! An alternate reality where u were brave , brave enough to give words to your thoughts, while you keep tossing and...