नुमाइश

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महताब ओढ़े है तारों की चादर
आसमान में कोई ख़लिश तो है

वो देखता है ख़्वाब परवाज़  के
परिंदे को कहिं कोई बंदिश तो है

मेरी आवाज़ अब वो नहीं सुनती
ममता के साथ कोई रंज़िश तो है

तारा कोई  टूटकर  बिखर रहा  है
अधूरी कुछ मेरी भी ख्वाइश तो है

गाह आधा गाह पूरा मैं जलता रहा
खुदा सब तेरी ही आज़माइश तो है

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_riti

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