अनकहे अल्फ़ाज़

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पत्थरों में कुछ तो तलाश रहे हो
कुछ न कुछ तो ज़रूर खोया है

इस रास्ते के मुबारक मुसाफ़िर हो
अंगिनतो ने इश्क़-ए-फितूर खोया है

उनकी मुस्कान से बहुत स्नेह है
बचपना शायद हो मज़बूर खोया है

सच्च सामने होकर भी छिपता रहा
बहुत कुछ इश्क़ में मग़रूर खोया है

सब कहते है तुमने नूर खोया है
हम कहते है उन्होंने कोहिनूर खोया है

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⏰ पिछला अद्यतन: May 05, 2020 ⏰

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