खुद हि कि बेख़ुदी से उम्र भर ये मलाल रहा
मेरा जीना भी ज़िन्दगी पे एक सवाल रहाअब गिला क्या शिकवा किसी से "अश "
तेरे हि तो रहते मेरा ये हाल रहाये अन्दाज़ ऐ वफ़ा भी तेरी अच्छी रही ,
किस से कहें अब हम तेरे जुर्म की दास्ताँ
न वो लोगों कि महफ़िलें रही
न कोई दोस्तों दर रहा।वो बखुबी सिखते रहे दुनियादारी के हुनर
और तु उन्हीं के हुनरों में अल्झा रहाअक़्ल और तेरी कश्मकश , मैं ताउम्र कश ता रहा
और देख तेरी ख़ुदगर्ज़ी ,
ना वो अक़्ल हि रहीं
और ना मैं रहा ।
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अल्फ़ाज़ (शब्द) Alfaaz
Poetryये कविताएँ मैंने अपने कालेज के दौरान लिखीं थीं । कुछ पूरी और कुछ आधी अधूरी सी मेरी नज़्में , जिन्हें मैं अक्सर अकेले में आज भी गुनगुनाया करता हूँ। उम्मीद करता हूँ आपको पसंद आयें.. *अल्फ़ाज़ copyrights © by Raju Singh Read full book https://www.am...