शिकायत

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खुद हि कि बेख़ुदी से उम्र भर ये मलाल रहा
मेरा जीना भी ज़िन्दगी पे एक सवाल रहा

अब गिला क्या शिकवा किसी से "अश "
तेरे हि तो रहते मेरा ये हाल रहा

ये अन्दाज़ ऐ वफ़ा भी तेरी अच्छी रही ,
किस से कहें अब हम तेरे जुर्म की दास्ताँ
न वो लोगों कि महफ़िलें रही
न कोई दोस्तों दर रहा।

वो बखुबी सिखते रहे दुनियादारी के हुनर
और तु उन्हीं के हुनरों में अल्झा रहा

अक़्ल और तेरी  कश्मकश , मैं ताउम्र कश ता रहा
और देख तेरी ख़ुदगर्ज़ी ,
ना वो अक़्ल हि रहीं
और ना मैं रहा ।

अल्फ़ाज़ (शब्द) Alfaazजहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें