फ़लक समेटे है न जाने कितने सितारे ,
कल एक माँगा तो फ़लक नाराज़ हो गया ।हुआ सो हुआ नाराज़ सही,
पर ये क्या के तमाम सितारे काले अंबर की चादर
से ढक गया ।ज़मी पे भी तो हमें एक चीज़ प्यारी है
सोचता हूँ ज़मी से कैसे कहूँ ।
~~~~~~~~~~~~~~~
Thank you very much for taking out time for reading my Poetry . Please do not forget to vote and comment if you this poetry
आप पढ़ रहे हैं
अल्फ़ाज़ (शब्द) Alfaaz
Poetryये कविताएँ मैंने अपने कालेज के दौरान लिखीं थीं । कुछ पूरी और कुछ आधी अधूरी सी मेरी नज़्में , जिन्हें मैं अक्सर अकेले में आज भी गुनगुनाया करता हूँ। उम्मीद करता हूँ आपको पसंद आयें.. *अल्फ़ाज़ copyrights © by Raju Singh Read full book https://www.am...