बहुत खोया है "अश",
किसी को पाने की ख़्वाहिश में,
अब ख़्वाहिश ऐ है ,
कि किसी को ना ,
किसी के पाने कि ख़्वाहिश हो ।दस्तूर-ए-ज़माना है ,
इन्सान-ए-फ़ितरत है,
क्या सबब दोगे ,
फ़क़त सर पटकना ठहरा।आसा नहीं ये इश्क़ ,
कितने शायर यह कह गए,
रोए चिल्लाए मगर ,
काग़ज़ों मे रह गए।वाह-वाह करेगा कोई,
कोई आह भरेगा ,
स़बक लेगा कोन ?
आख़िर शेर ही ठहरा ।
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अल्फ़ाज़ (शब्द) Alfaaz
Puisiये कविताएँ मैंने अपने कालेज के दौरान लिखीं थीं । कुछ पूरी और कुछ आधी अधूरी सी मेरी नज़्में , जिन्हें मैं अक्सर अकेले में आज भी गुनगुनाया करता हूँ। उम्मीद करता हूँ आपको पसंद आयें.. *अल्फ़ाज़ copyrights © by Raju Singh Read full book https://www.am...