इश्क

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बहुत खोया है "अश",
किसी को पाने की ख़्वाहिश में,
अब ख़्वाहिश ऐ है ,
कि किसी को ना ,
किसी के पाने कि ख़्वाहिश हो ।

    दस्तूर-ए-ज़माना है ,
    इन्सान-ए-फ़ितरत है,
    क्या सबब दोगे ,
    फ़क़त सर पटकना ठहरा।

आसा नहीं ये इश्क़ ,
कितने शायर यह कह गए,
रोए चिल्लाए मगर ,
काग़ज़ों मे रह गए।

    वाह-वाह करेगा कोई,
    कोई आह भरेगा ,
    स़बक लेगा कोन ?
    आख़िर शेर ही ठहरा ।

अल्फ़ाज़ (शब्द) Alfaazजहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें