उस रात का कुछ अलग ही नजा़रा था।
सब कुछ जीतकर भी मैं हारा था।।
आसमान में चांद तारे चमक रहे थे।
तब भी इतना अंधेरा था कि मैं डगमगा रहा था।।
तब भी इतना अंधेरा था कि मैं डगमगा रहा था।।
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हिन्दी काव्य
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नजा़रा
उस रात का कुछ अलग ही नजा़रा था।
सब कुछ जीतकर भी मैं हारा था।।
आसमान में चांद तारे चमक रहे थे।
तब भी इतना अंधेरा था कि मैं डगमगा रहा था।।
तब भी इतना अंधेरा था कि मैं डगमगा रहा था।।