उन सुनसान गलियों का मैं अब भी राही हूं।
मैं कल भी अकेला था मैं आज भी अकेला हूं।।
अपने अकेलेपन का एहसास करने में कुछ समय काट लेता हूं।
वरना आलम तो यह है कि मैं अपने ख्यालों से भी जुदा हूं।।
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हिन्दी काव्य
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अकेला
उन सुनसान गलियों का मैं अब भी राही हूं।
मैं कल भी अकेला था मैं आज भी अकेला हूं।।
अपने अकेलेपन का एहसास करने में कुछ समय काट लेता हूं।
वरना आलम तो यह है कि मैं अपने ख्यालों से भी जुदा हूं।।