किसने सोचा था कि एक दिन ऐसा भी आएगा की एग्जाम तो होंगे पर एग्जामिनेशन हाल नहीं होगा,
क्लास तो होगी पर क्लासरूम नहीं होगा,
दोस्त तो होंगे पर वो साथ नहीं होगा।किसने सोचा था कि एक दिन ऐसा भी आएगा की मंज़िल तो एक ही होगी पर राहें अलग,
तरीका तो वहीं होगा पर माध्यम अलग।
लंच ब्रेक तो होगा पर जगह अलग,
ग्राउंड तो होगा पर उसका नज़ारा अलग।किसने सोचा था कि किताबे तो वहीं होंगी पर रखने की जगह अलग,
आंखे तो वहीं होंगी पर उनके समक्ष दृश्य अलग।
यारियां तो वहीं होंगी पर दूरियां अलग,
बैठना तो वैसे ही होगा पर बैठने की जगह अलग।किसने सोचा था कि विद्यालय प्रांगड़ तो होगा पर विद्यार्थी नहीं,
क्लास तो रोज पर वो मस्ती नहीं।
बास्केट बॉल ग्राउंड तो होगा पर बास्केट बॉल नहीं,
वो यादें तो होंगी पर हकीकत नहीं।
हकीकत नहीं।।
किसने सोचा था।
किसने सोचा था।।
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हिन्दी काव्य
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