"" टांगे पूरी खोल !! हाथ पीछे कर ! फिर वो धुंधला साया नीचे लेटी औरत के मुंह पर तमाचो की बौछार कर देता है ! जब वो धुंधला साया उस औरत को बेरहमी से मारता था तो अवनी की नींद सहम कर खुल जाती थी "" " क्या हर रिश्ता एक औरत के लिए हिफाज़त से भरा होता है ?? हर रिश्ते में एक औरत "अपनापन" ढूंढती है ! क्या उसे सच में हर रिश्ते में अपनापन मिलता है ?? क्यों हर नज़र एक औरत के जिस्म को भूखे भेड़िए की तरह देखती है ?? औरत होना क्या आज के युग में पाप है ? अपने मन की पीड़ा औरत किससे कहे ?? हर रिश्ते की तरफ वो उम्मीद की नजरों से देखती है कि कोई तो हो जो उससे उसका दर्द पूछे ? क्या पूरी जिन्दगी सहते रहना ही एक "औरत" का धर्म है ?? इन सब सवालों में जूझती एक "लड़की " की आप बीती .. जिसको इस बेरहम समाज ने कब "औरत" बना दिया कि उसे भी नही पता लगा !