नमस्कार मित्रों, भगवद्गीता और भगवद्गीता के ज्ञान पर न जाने कितने लोगों ने काम किया होगा। न जाने कितनी गीता आपने पढ़ी होगी, सुनी होगी या देखि होगा। प्रश्न बहुमूल्य है की क्या है इस गीता में? क्या विशेष है इसमें? क्यों अनेकानेक बार पढ़ा गया यह ग्रन्थ विश्व का एक मात्र ग्रन्थ बन जाता है जिस पर सबसे ज्यादा लिखा गया, सबसे ज्यादा टिप्पणियां हुई, सबसे ज्यादा शोध का विषय बना, खोज एवं अन्वेषण का विषय बना? इन सारे प्रश्न का उत्तर तो इसके हृदय में ही स्थित है। श्रीमद्भगवद्गीता में अगर कुछ विशेष है तो वे है परम भगवान् श्री कृष्णा, बाकी सब तो निमित्त है, साधन है, सूक्ष्म है, माध्यम है। अगर और सरल भाषा में व्यक्त करूँ तो गीता में कुछ भी ख़ास नहीं है अपितु जीवन के हर प्रश्न का उत्तर है इसमें। संसार में ऐसा कोई प्रश्न बना ही नहीं जिसका उत्तर श्री कृष्णा ने अपने गीता में ना दिया हो।
अध्याय १
अध्याय के नाम मात्र से ही यह स्पष्ट हो जाता है की युद्ध प्रारम्भ होने से पहले ही अर्जुन के मन में दुविधा और प्रश्नो का ज्वालामुखी उमड़ पड़ता है। और यह विषाद केवल अर्जुन ही नहीं अपितु धृतराष्ट्र और दुर्योधन के मन में भी उत्पन्न हुआ।पहले श्लोक में ही जब धृतराष्ट्र ने अपने सारथि संजय से प्रश्न किया की युद्ध स्थल पर उनके और पांडवों के पुत्र क्या कर रहे है तो उनके प्रश्न में जिज्ञासा से ज्यादा चिंता और भय झलक रही थी। और यह चिंता और भय ही हमे बताता है की हम कहीं न कहीं गलत मार्ग पर हैं। जिस प्रकार धृतराष्ट्र को भी यह अनुमान था की यह युद्ध उचित नहीं है किन्तु उसके विषाद का निवारण करने वाला भी कोई नहीं था।
और दुर्योधन के मन में विषाद से अनेकानेक शंकाएं उत्पन्न हुई, जिसमे वे कभी अपने गुरु द्रोणाचार्य से अर्जुन की सेना का बखान करते, तो कभी उसकी सेना को कमजोर और सिमित बताते, तो कभी अपनी सेना का गुणगान करते और कितनी आसानी से वे जीत जायेंगे इसका उल्लेख करते। किन्तु जो मन की शंका थी उसका सटीक और विश्वशनीय उत्तर उन्हें देने वाला वहां कोई ना था, जिसके विपरीत अर्जुन के पास स्वयं श्री कृष्ण थे अर्जुन की हर समस्या और प्रश्नो के सटीक उत्तर को लेकर। जिस शकुनि की बात और सलाह के साथ दुर्योधन ने अपना सम्पूर्ण जीवन व्यतीत किया वो शकुनि के पास भी इस शंका और दुविधा का समाधान ना था। इसलिए जीवन में हमे इस बात का जरूर ध्यान रखना चाहिए की हम अपना सलाहकार किसे बनाते है, जीवन के सबसे महत्वपूर्ण समय पर विषाद का उत्तर न देने वाले शकुनि को, या जीवन के हर समस्याओं को हर लेने वाले श्री कृष्ण को।
अपनी सेना के सदस्यों का उत्साह बढ़ाने के लिए वे एक एक महारथी, अतिरथी तक का नाम लेकर उनका उत्साह बढ़ाते है और अपने सेनापति श्री भीष्म को आग्रह करते है की वे अपना संख बजा कर युद्ध की उद्घोषणा करें। किन्तु जब एक साथ कौरवो और पांडवो के शंखनाद की ध्वनि आकाश में गूंजती है तो उस नाद को सुन कर दुर्योधन सहित कई योद्धा भयभीत हो गए और उनके ह्रदय विदीर्ण हो गए।
श्रीकृष्ण से आग्रह कर जब अर्जुन रणभूमि के मध्य में पहुंचे तो उन्हें चारो और अपने भाई, बंधू, गुरु, पितामह, चाचा, ताऊ, अनुज, अनुज पुत्र और कई रिश्तेदार और मित्र नजर आये जो उनके साथ युद्ध करने हेतु खड़े हैं, और बिना किसी संकोच के किसी को भी मारने के लिए ततपर हैं। ऐसे में अर्जुन अपने शस्त्र डाल देते हैं अतः शोक में चले जाते है। वे अपने सम्बन्धियों, प्रेमियों, गुरुओं, पितामहों के ऊपर निजी सुखों को नहीं रखना चाहते थे। उनका कहना था की सारे साम्राज्य को जित कर उसका आनंद किनके सामने लेंगे वो, उनका भोग देख कर हर्षित होने वाला भी कोई नहीं रहेगा तो ऐसे भोग का करेंगे क्या। अगर वे अपने सारे रिश्तेदारों को मार देंगे तो उसका पाप भी उन्हें ही लगेगा और उस पाप का दंड कई जन्म तक भोगना पड़ेगा जबकि यह साम्राज्य तो केवल एक ही जन्म के लिए सिमित है। उनका आखरी तर्क यह भी था की यदि किसी परिवार के सारे पुरुषों को मार दिया जाए तो महिलाये विधवा हो जाएँगी, कुल धर्म का नाश हो जायेगा, जिससे उनके पितरों को पूजने वाला और पितृ तरपान करने वाला कोई नहीं बचेगा और अंततः उनके कुल का नाश हो जायेगा और पितरो को कई वर्षों तक नर्क में वास करना पड़ेगा। और श्री अर्जुन इन पापो के मूल कारण नहीं बनना चाहते थे।
अंत में अर्जुन अपने शस्त्रों का त्याग कर युद्ध छोड़ कर श्री हरी के मार्गदर्शन के लिए उपस्थित हो जाते हैं।मित्रों जीवन में चाहे मार्ग जितना भी सरल हो, चाहे हर बाजी हमारे हाथ में हो किन्तु किसी भी निर्णय को लेने और उसे अंजाम देने से पहले सम्पूर्ण रूप से सोचना और विचार विमर्श करना बहुत अनिवार्य है। श्री रणछोड़(कृष्ण) ने ही कहा है की युद्ध केवल तब होना चाहिए जब कोई विकल्प न बचे और शांति तो कोई विकल्प होता ही नहीं, वो अनिवार्य है और हर कीमत सस्ती ही होती है।
।। हरे कृष्ण।।🙏🏻🙏🏻😊
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श्रीमद्भगवद्गीता - सरल शब्दों में
Spiritualश्रीकृष्ण अर्जुन के बीच महाभारत के रणक्षेत्र कुरूक्षेत्र में हुई ज्ञानज्योति वार्तालाप का संक्षेप में वर्णन।