नमस्कार मित्रों, अध्याय 3 में श्री कृष्ण अर्जुन के प्रश्नो का उत्तर देते हुए कर्म योग के बारे में बताते है। कर्म का महत्त्व क्या है, इन्द्रिय, मन, बुद्धि, अहंकार और आत्मा में क्या समन्वय है और किस प्रकार काम सब पर वास करता है। जब हम आत्मा के हित के लिए जीते है और शरीर के हित को त्याग देते है, तब आत्मा के लिए बुद्धि से मन मारकर इन्द्रियों को वश में करने का प्रयत्न करते है, जो कर्मयोग का सार है।
अध्याय ४ - ज्ञानकर्मसन्यास योग
इस योग के बारे में श्री कृष्ण जब कहते है की इस योग को उन्होंने सबसे पहले सूर्य को सुनाया था और सूर्य ने अपने पुत्र वैवस्वत मनु से कहा था जो मनु के द्वारा उनके पुत्र इच्छवाकु तक पहुंचा। जिसे आगे चलकर बड़े बड़े राजऋषियों ने सुना, किन्तु लम्बे समय से यह पृथ्वी लोक में विलुप्त सा हो गया है। यह सुनकर अर्जुन पुनः भ्रमित हो गए की श्री कृष्ण का जन्म तो अभी हुआ है और सूर्य तो कल्प के प्रारम्भ से ही है। मित्रों श्री कृष्ण की यह गीता अर्जुन के अलावा उस समय हनुमान जी ने, व्यास मुनि ने और संजय ने भी सुनी थी।
अर्जुन के इस दुविधा को दूर करने हेतु श्री कृष्ण बताते है *"बहूनि में व्यतीतानि जन्मानि"* अर्थात उनके और अर्जुन के कई जन्म हो चुके है। उन सबको कोई नहीं जान सकता। किन्तु श्री कृष्ण अपने हुए सारे जन्म को भलीभांति जानते है। वैसे तो वे अविनाशी और अजन्मा है फिर भी वे प्रकृति के गुणों के अधीन नहीं है, अपितु प्रकृति को अपने अधीन करके अपनी योगमाया से बार बार जन्म लेते है।यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥7॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥8॥श्री कृष्ण कहते है की जब जब धर्म का पतन होगा और अधर्म की वृद्धि होगी तब तब मैं अपने रूप को रचता हु और साकार रूप में लोगों के सामने आता हूँ। साधुओं की रक्षा के लिए, दुष्टों के विनाश के लिए, धर्म की पुनः स्थापना के लिए मैं हर युग में बार बार जन्म लेता हूँ।
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श्रीमद्भगवद्गीता - सरल शब्दों में
Spiritüelश्रीकृष्ण अर्जुन के बीच महाभारत के रणक्षेत्र कुरूक्षेत्र में हुई ज्ञानज्योति वार्तालाप का संक्षेप में वर्णन।