जुलाई 1613,
"मुमताज़, कहां हैं आप?" शहजादे खुर्रम ने पूछा
"हम यहीं हैं।" मुमताज़ बोलीं
"कहां?" शहजादे खुर्रम ने पूछा
"हम यहां हैं, गुसलखाना में।" मुमताज़ बोलीं
शहजादे खुर्रम भागते हुए गए। और उन्होंने देखा की मुमताज़ को उल्टियां हो रहीं थीं।
"सिपाही! सिपाही! जल्दी हाकिम साहिबा को बुलाओ!" शाह खुर्रम चिल्लाए
एक सिपाही जाकर हाकिम साहिबा को बुला लाया। उतनी देर में बादशाह, नूर जहां, जगत गोसाईं और भी जने आ गए थे।
"रुकिए हमको देखने दीजिए।" हाकिम साहिबा बोलीं
"जी।" शाह खुर्रम बोले
"क्या आपको चक्कर भी आ रहे थे?" हाकिम साहिबा ने पूछा
"जी, थोड़े बहुत।" मुमताज़ बोलीं
जगत गोसाईं बादशाह और नूर जहां को देखकर मुस्कुराईं। वो समझ गए थे की क्या बात थी।
"मैं देखती हूं।" हाकिम साहिबा बोलीं
उन्होंने मुमताज़ की नब्ज़ और आंखें देखीं।
"हम्म्म... बधाई हो। आप मां बनने वाली हैं।" हाकिम साहिबा बोलीं
"सच्ची?" मुमताज़ बेगम ने पूछा
"जी हां।" हाकिम साहिबा बोलीं
"मुबारक हो, मेरे बच्चे।" बादशाह जहांगीर ने बोला
"शुक्रिया अब्बू।" शाह खुर्रम बोले
बादशाह ने खुर्रम को इशारा किया।
"ओह।" शाह खुर्रम बोले और उनको अपनी मोतियों की माला उतारकर दी।
"शुक्रिया, शहजादे।" हाकिम साहिबा बोलीं और चली गईं
"मुबारक हो, खुर्रम।" जगत गोसाईं बोलीं।
"शुक्रिया अम्मी।" शाह खुर्रम बोले
"हमारे प्यारे से बेटे और बहू को बहुत सारी बधाइयां।" नूर जहां बोलीं "खुदा करे की आप दोनो के इस बार भी बेटी ही पैदा हो।" नूर जहां अपने मन में बोलीं।
"शुक्रिया, मलिका ए हिंदुस्तान।" शाह खुर्रम बोले
"शुक्रिया, मलिका ए हिंदुस्तान... मेरा मतलब है फुफिजान।" मुमताज़ बोलीं
"अपना खयाल रखना... यहां तुम्हारे बहुत से दुश्मन घूम रहे हैं।" नूर जहां बोलीं
"मतलब?" मुमताज़ ने पूछा
"कुछ नहीं, बहू... आराम करो।" जगत गोसाईं बोलीं
सब वहां से चले गए।
"आप हमेशा ऐसा क्यों करती हैं, नूर जहां?" बादशाह ने पूछा
"कैसा करते हैं, बादशाह?" नूर जहां ने पूछा
"जो आपने अभी किया है, नूर जहां।" जगत गोसाईं बोलीं
"मलिका ए हिंदुस्तान, जगत गोसाईं।" नूर जहां बोलीं
"आप होंगी मलिका ए हिंदुस्तान लेकिन अभी आप उनकी साथी हैं, नूर जहां।" बादशाह बोले
"जहांपनाह, आप भी?" नूर जहां ने पूछा
"जी हां, नूर जहां। मैं भी... हमने आपको सर चढ़ा कर बहुत बड़ी गलती कर दी है, मलिका ए हिंदुस्तान।" बादशाह बोले और वहां से चले गए
"आप अपनी आदतों को सुधार लीजिए, नूर जहां। वरना आप लिए बहुत बड़ी मुश्किल हो जाएगी।" जगत गोसाईं बोलीं
नूर जहां ने जगत गोसाईं का मुंह पकड़ लिया।
"बादशाह हमें कितना भी कुछ बोल लें। लेकिन आप हमें कुछ नही बोल सकती हैं, जगत गोसाईं।" नूर जहां गुस्से में बोलीं
जगत गोसाईं ने नूर जहां का हाथ पकड़ के कहा, "आपके इस बर्ताव से पता चल रहा है, की आपमें और मान बाई में, कुछ फर्क नही है। जब हम मां बनने वाले थे तो उन्होंने है पर जानलेवा हमला किया था क्योंकि उस समय हम उनके सबसे करीब थे और आज आपने हम पर हमला किया है क्योंकि बादशाह ने हमारी तरफ बोला है।" और वहां से चली गईं।
नूर जहां उनको देखती रह गईं।
"मानवती बाई ने सही कहा है, नूर जहां। आप अपने आप को जल्द ही सुधार लीजिए। आपके लिए ही अच्छा होगा।" मरियम उज्जमानी बोलीं
"जी, जोधा बेगम।" नूर जहां बोलीं
9 महीने बाद,
23 मार्च 1614,
"जहांपनाह और शाह खुर्रम, मलिका ए हिंदुस्तान और जगत गोसाईं जी ने आपको बुलाया है।" एक दासी आकर बोली
"क्यों? क्या हुआ?" शाह खुर्रम ने पूछा
"मुमताज़ बेगम के जनने का समय आ गया है।" दासी बोली
शहजादे खुर्रम दौड़ते हुए हरम के वहां गए।
"हमारा तो इंतजार करते, खुर्रम।" बादशाह बोले
"माफ कीजिए, अब्बू। वो हम घबरा गए थे। क्योंकि मुमताज़ की गर्भावस्था नाजुक थी।" शाह खुर्रम बोले
"हां, हम समझ सकते है।" बादशाह बोले
"आप कैसे समझेंगे? आप तो उस समय हमारे पास भी नहीं थे, जहांपनाह।" जगत गोसाईं बोलीं
"अम्मी... नहीं।" शाह खुर्रम बोले
"हमें माफ करना, जगत गोसाईं।" बादशाह बोले
"किया माफ।" जगत गोसाईं बोलीं और हसने लगीं
"आप यहां हैं तो वहा कौन है?" बादशाह ने पूछा
"अरे हम यह तो बताना ही भूल गए। मुबारक हो खुर्रम, तुम्हारे अभी भी बेटी ही हुई है।" जगत गोसाईं बोलीं
"क्या?" शाह खुर्रम ने खुशी खुशी पूछा
"हां। हाकिम साहिबा अभी ला रहीं हैं उसे।" जगत गोसाईं बोलीं
हाकिम साहिबा बच्ची को लाती हैं।
"यह लीजिए, शाह खुर्रम, आपकी अमानत।" हाकिम साहिबा बच्ची देते हुए बोलीं
"हमारी बच्ची।" शाह खुर्रम बोले
"जरा हमें भी तो हमारी पोती का चहरा दिखाए।" बादशाह बोले
शहजादे ने बच्ची को बादशाह की गोद में दिया।
"वाह, क्या चमक है। बिलकुल एक फूल की तरह। यही तुम्हारे जीने की वजह बनेगी, खुर्रम। और इसीलिए, आजसे इसका नाम होगा 'जहांनारा'। जहानारा बेगम।" बादशाह जहांगीर बोले
"जहांनारा, हमारे जीने की वजह।" शाह खुर्रम बोले
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Taj Mahal: दास्तान ए इश्क़
Historical Fictionयह कहानी ताज महल के निर्माण और उसके पीछे की कहानी के ऊपर आधारित है। इस कहानी का उद्देश्य किसकी भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है।