जिस दिन नूर जहां ने उस आदमी को भेजा शाह खुर्रम और अर्जुमंद को ढूंढने उसी दिन नूर जहां ने हिंदुस्तान में अंग्रेजों को कारोबार करने की इजाजत दे दी थी और उसी रात बादशाह जहांगीर ने अपने बेटे शाह खुसराऊ की बची हुई एक आंख भी फोड़ दी और उसे ताउम्र के लिए अंधा बना दिया।
अगले दिन, जब अर्जुमंद शाह खुर्रम को झोपड़ी में न पाती है तो उन्हें ढूंढते हुए झोपड़ी के बाहर जाती है। शाह खुर्रम एक इमारत का चित्र बना रहे थे जिसे अर्जुमंद ने महल में भी देखा था।
"शाह खुर्रम, यह आप क्या बना रहे हैं?" अर्जुमंद ने पूछा
"यह एक इमारत बना रहा हुं। और देखना एक दिन हम भी आपके लिए एक ऐसा महल बनवाएंगे, मुमताज़।" शाह खुर्रम बोले
"मुमताज़? कौन मुमताज़?" अर्जुमंद ने पूछा
"आप और कौन? मुमताज़ का मतलब होता है 'कोई खास' और हमारे लिए आपसे ज्यादा ख़ास और कौन है?" शाह खुर्रम बोले
अर्जुमंद धीरे से मुस्कुराई और थोड़ी परेशान हो गई।
"क्या हुआ? आप एक दम से संगीन कैसे हो गई?" शाह खुर्रम ने पूछा
"आप मुझसे कुछ रहे थे न की बादशाह ने किसे अपने तख्त का वारिस बनाया था?" अर्जुमंद ने पूछा
"जी।" शाह खुर्रम बोले
"आपको, शाह खुर्रम।" अर्जुमंद बोली
"हमें?" शाह खुर्रम ने पूछा
"जी हां, शाह जहां।" अर्जुमंड बोली
"आपको हमारा यह नाम कैसे पता चला? यह नाम तो केवल हमें और दादाजान को पता था।" शाह खुर्रम ने पूछा
"बस पता है।" अर्जुमंद ने कहा
अर्जुमंद ने उस आदमी को आते देख लिया। और शाह खुर्रम ने अंग्रेजों के जहाजों को आते देख लिया।
"शाह खुर्रम भागिए।" अर्जुमंद बोली
"अर्जुमंद, देखिए... अंग्रेजों के जहाज। हमें जल्द ही अब्बुजान को यह बताना होगा।" शाह खुर्रम बोले और वो दोनों अपने घोड़े के ऊपर सवार होके महल की ओर भागे। कुछ दूर तो उस आदमी ने उन दोनों का पीछा किया लेकिन जैसे ही वो दोनों बाजार की तरफ आए तो उसने उनका पीछा करना छोड़ दिया।
"अब्बू! अब्बू!" शाह खुर्रम दौड़ते हुए बादशाह जहांगीर के कमरे में आए।
"क्या हुआ शाह खुर्रम? आप इतना भागते हुए कहां से आ रहे हैं? और 2 दिन से कहां थे?" बादशाह जहांगीर ने पूछा
"अब्बू, हम समुद्र के तट पर थे। अर्जुमंद और हम दोनों थे। वहां से एक आदमी ने हमारा पीछा किया तो हम यहां भागते हुए आए और..." शाह खुर्रम बोले
"और?" बादशाह जहांगीर ने पूछा
"और अंग्रेजों के 4 जहाज़ हमारे उस तट के ऊपर आकर रुकने वाले थे।" शाह खुर्रम बोले
"क्या? अंग्रेजों के?" बादशाह जहांगीर ने पूछा
"जी अब्बू।" शाह खुर्रम बोले
"सलीम, चिंता मत करिए। हमने ही उनको इजाज़त दी थी। हिंदुस्तान में कारोबारी के सिलसिले में आए हैं वो लोग।" नूर जहां बोली
"हमसे बिना पूछे?" बादशाह जहांगीर ने पूछा
"जी, उनसे हमने कल ही बात की थी। जब आप लाहौर से शाह खुसराऊ को ला रहे थे।" नूर जहां बोली
"तुमने यह आखरी विदेशी फैसला किया है, मेहर। आज के बाद सारे विदेशी फ़ैसले हमसे मशवरा करे बिना नहीं लेंगी आप।" बादशाह जहांगीर बोले
"ठीक है, जहांपनाह।" नूर जहां बोली
"और तुम जाओ। नहा धो कर दरबार में आ जाओ। हमें कुछ फ़ैसले लेने हैं।" बादशाह जहांगीर बोले
"जी अब्बू।" शाह खुर्रम बोले
(आसफ खान के घर का दृश्य)
"अर्जुमंद, मेरी बच्ची।" आसफ खान बोले
"अब्बू।" अर्जुमंद बोली
आसफ खान ने अर्जुमंद को गले से लगा लिया।
"अल्लाह का शुक्र है की तुमको कुछ नहीं हुआ।" आसफ खान बोले
"मतलब?" अर्जुमंद ने पूछा
"मतलब कुछ नही, मेरी बच्ची। जाओ नहा धोकर तैयार होकर आ जाओ।" आसफ खान बोले
"जी अब्बू।" अर्जुमंद बोली
(दीवान ए ख़ास का दृश्य)
"बा अदब, बा मुलाइजा होशियार, शहंशाह ए हिंद नूरउद्दीन बेग मुहम्मद जहांगीर, दीवान ए ख़ास में तशरीफ ला रहे हैं।" एक सिपाही ने ऐलान किया।
बादशाह जहांगीर तख्त पर बैठे।
"हमने आप सभी को आज इस दीवान ए ख़ास में इसलिए बुलाया है ताकि हम कुछ फैसलों का ऐलान कर सकें।" बादशाह जहांगीर बोले
"जी, बादशाह।" घियास बेग बोले
"सबसे पहला जो फैसला हमने लिया है वो यह है की..." बादशाह जहांगीर बोले
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Taj Mahal: दास्तान ए इश्क़
Historical Fictionयह कहानी ताज महल के निर्माण और उसके पीछे की कहानी के ऊपर आधारित है। इस कहानी का उद्देश्य किसकी भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है।