1622 से लेकर 1627 तक मुग़ल सल्तनत पर दुखों का पहाड़ टूटता ही गया। 1622 में पहले मिर्ज़ा घीयास बेग यानि मलिका ए हिंदुस्तान, नूर जहां के अब्बू का इंतकाल हो गया, 1622 में ही शहजादे खुसरो की हत्या शाह खुर्रम के कहने पर हो गई थी। उनके बाद 1623 में ही मरियम उज्जमानी, जोधा बेगम का भी निधन हो गया। उनके बाद 1623 में पादशाह बेगम, रुकय्या सुलतान बेगम का भी इंतकाल हो गया। 1613 में सलीमा बेगम का इंतकाल हो गया था।
जब बादशाह जहांगीर अपने अंत के समय में चल रहे थे, तब नूर जहां और शाह खुर्रम के बीच झगड़े चल रहे थे। बादशाह जहांगीर ने नूर जहां को बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन वह न समझीं। 1622 में शाह खुर्रम को ऐसा लगा की नूर जहां उनके खिलाफ़ कुछ षडयंत्र रच रही हैं तब उन्होंने उनके और अपने अब्बू यानि बादशाह जहांगीर के खिलाफ़ बगावत छेड़ दी थी। नूर जहां का षडयंत्र यह था की बादशाह जहांगीर के बाद इस मुग़ल सल्तनत का बादशाह शहजादे शहरयार बनें लेकिन न ही बादशाह को यह मंजूर था और न ही शाह खुर्रम को यह मंजूर था। इसी को ख़त्म करने के लिए शाह खुर्रम ने बगावत कर दी थी। शाह खुर्रम ने अपनी अलग एक सल्तनत खड़ी करना चालू कर दी थी। वह कभी भी उन पर हमला कर सकता था। जब यह सब हो चुका तो बादशाह ने नूर जहां को इन सबका जिम्मेदार ठहराया।
"नूर जहां, यह सब तुम्हारी वजह से ही रहा है। आज तुम्हारी वजह से हमारा अपना बेटा हमारे खिलाफ़ बगावत करने के लिए खड़ा है।" बुज़ुर्ग बादशाह जहांगीर ने कहा
"आखिर है तो वो आपका ही ख़ून, जहांपनाह। आपने अपने अब्बू के खिलाफ़ बगावत की, अब आपका बेटा आपके खिलाफ़ बगावत कर रहा है। और किसको पता? कब वो आपका कत्ल भी करवा दे।" नूर जहां बोलीं
"तुम्हे अपने शौहर के लिए यह सब बातें करने में ज़रा भी हिचक नहीं हुई, नूर जहां?" आसफ खान ने पूछा
"हां! नही आ रही है हमको शर्म! हम बेशरम हैं! हमने जिससे प्यार किया था वो सलीम कहीं खो गया है!" नूर जहां ने चिल्लाते हुए बोला
"बस! बहुत हुआ! बहुत बोल लिया आपने और बहुत सुन लिया हमने, अब हमको चैन से मरने तो दीजिए। हम अपने बेटे के हाथों नही मरना चाहते हैं।" बादशाह ने चिल्लाते हुए कहा और रोने लगे। "आपको पता है हमारे अब्बू यानि अज़ीम बादशाह अकबर कब रोए थे?" बादशाह ने पूछा
"जी नहीं, जहांपनाह।" आसफ खान बोले
"जब उनको पता चला था की महाराणा प्रताप की मृत्यु हो गई है। तब वो पहली बार सबके सामने रोए थे। और एक हम हैं, जो किसी के मरने पर नहीं रो रहे हैं बल्कि अपने ही अज़ीज़ लोगों की वजह से रो रहे हैं।" बादशाह रोते हुए बोले
"अब्बू, आप मत रोइए।" शहजादे शहरयार बोले
बादशाह ने शहरयार को गले लगा लिया और उसी समय महाबत खान वहां आए।
"जहांपनाह, हमारा जाने का वक्त हो गया है।" महाबत खान बोले
"आप कहीं जा रहे हैं, जहांपनाह?" नूर जहां ने पूछा
महावत खान भी नूर जहां के खिलाफ़ थे।
"जी हां, नूर जहां... हम जा रहे हैं। अपने दादाजान के मकबरे पर लाहौर। लाहौर गए हुए बहुत समय हो गया था।" बादशाह बोले
"बादशाह, क्या हम आप साथ आएं?" आसफ खान ने पूछा
"नहीं, आप यहीं रहकर, शाही हरम और इस महल की रक्षा कीजिए।" बादशाह जहांगीर बोले
उस वक्त बादशाह जहांगीर कश्मीर में अपनी बड़ी अम्मी, सलीमा बेगम के पान महल में थे। और अब वहां से लाहौर के लिए रवाना हो चुके थे। उन सब की जानकारी शाह खुर्रम तक पहुंच गई थी। एक तरफ शाह खुर्रम अपनी सेना के साथ हमले के लिए तय्या टी तो दूसरी ओर से ख़बर आई की बादशाह जहांगीर अब नहीं रहे थे।
"क्या? अब्बू अब नहीं रहे?" शाह खुर्रम ने पूछा
"जी हां, शाह खुर्रम।" सिपाही बोला
"अब्बू।" शाह खुर्रम ने उदास होते हुए बोला
"अब हम क्या करें, शाह खुर्रम?" सेनापति ने पूछा
"नहीं, हमला नहीं करेंगे। हमें अब्बू एस मिलने जाना है।" शाह खुर्रम बोले
शाह खुर्रम अपने अब्बू के जनाज़े में गए।
"अरे देखिए, कौन आया है... हमारे अब्बू की गद्दार औलाद आई है।" शहजादे शहरयार बोले
"यह आप क्या कह रहे हैं? यह वक्त इन बातों का नहीं है।" मिहर-उन-निसा बेगम बोलीं।
मिहर-उन-निसा बेगम, नूर जहां और उनके पहले पति, शेर अफगान की बेटी हैं, जो शहजादे शहरयार की बीवी भी हैं।
"आप एक सब मामलों में दख़ल न दें, तो ही अच्छा होगा, लाडली बेगम।" शहजादे शहरयार बोले
"वो बोल सकती है, शहाजदे शहरयार। आख़िर अब वो मलिका ए हिंदुस्तान जो हैं।" नूर जहां बोलीं
"नामुमकिन।" शहजादे खुर्रम बोले
"आज हम, मलिका ए हिंदुस्तान, अपने पूरे होशो हवास में यह ऐलान करते हैं की हमारे अगले बादशाह, शहजादे शहरयार होंगे और उनकी बीवी लाडली बेगम उर्फ मिहर-उन-निसा बेगम, मलिका ए हिंदुस्तान होंगी।" नूर जहां बोलीं
"हम ऐसा नहीं होने देंगे।" शाह खुर्रम बोले
शाह खुर्रम ने अपने अब्बू का माथे पर चूमा और वहां से चले गए।
"अब आप क्या करेंगे, शाह खुर्रम?" सेनापति ने पूछा
"ख़त्म कर दो।" शाह खुर्रम बोले
"क्या ख़त्म कर दें, शाह खुर्रम?" सेनापति ने पूछा
"शहरयार को ख़त्म कर दो। हमें ऐसा भाई नहीं चाहिए जो अपने खुदके सगे भाई पर विश्वास न करे।" शाह खुर्रम बोले
"पर शहजादे..." सेनापति बोले
"जाओ!" शाह खुर्रम चिल्लाए
"जी।" सेनापति बोले और वहां से चले गए।
कत्ल की कई कोशिशों के बाद आख़िरकार 26 जनवरी 1628 को उनके सेनापति को फतह हासिल हुई और उन्होंने बादशाह शहरयार का कत्ल कर दिया था।
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Taj Mahal: दास्तान ए इश्क़
Narrativa Storicaयह कहानी ताज महल के निर्माण और उसके पीछे की कहानी के ऊपर आधारित है। इस कहानी का उद्देश्य किसकी भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है।