अक्टूबर 1630
"बादशाह! बादशाह!" एक कनीज़ भागती हुई आई।
"क्या हुआ?" बादशाह ने पूछा
"वोह... मुमताज़ बेगम..." वो कनीज़ बोली
"क्या हुआ मुमताज बेगम को?" बादशाह ने परेशान होतेहुए पूछा
"वो यहां दीवान ए ख़ास में आ ही रहीं थीं की एक दम से वह बेहोश हो गईं।" कनीज़ ने कहा
"कैसी हैं वो अब?" बादशाह ने पूछा
"उनके जो लक्षण हैं उससे तो लगता है की..." कनीज़ बोली
"की वह मां बनने वाली हैं।" हाकिम साहिबा बोलीं
"क्या?" बादशाह ने पूछा
"जी हां, बादशाह... आप एक बार फिर बाप बनने वाले हैं।" हाकिम साहिबा बोलीं
"सच्ची?" बादशाह ने खुश होते हुए पूछा
"जी हां, बादशाह। लेकिन... हमको आपसे कुछ बात करनी है।" हाकिम साहिबा बोलीं
"जी, बोलिए।" बादशाह बोले
"अकेले में।" हाकिम साहिबा बोलीं
"जी हम अभी आते।" बादशाह बोले
"सभा अभी बर्खास्त की जाती है।" बादशाह बोले
बादशाह हाकिम साहिबा के साथ गए।
"जी बोलिए, हाकिम साहिबा।" बादशाह बोले
"हम आपको एक सलाह देना चाहते हैं।" हाकिम साहिबा बोलीं
"जी, कहिए।" बादशाह बोले
"आप हमारी बात मानें तो आप यह बच्चा गिरा दीजिए।" हाकिम साहिबा बोलीं
"क्यों?" बादशाह ने पूछा
"क्योंकि अगर यह बच्चा होगा तो यह उनका चौदहवां बच्चा होगा। और अब मुमताज बेगम की यह हालत नहीं की वह एक बच्चे को जन्म दे सकें। और अगर ऐसा हुआ तो मुमताज बेगम की जान को ख़तरा होगा।" हाकिम साहिबा बोलीं
"ठीक है... आप यह बच्चा गिरा दीजिए।" बादशाह बोले
"नहीं! यह बच्चा हम नहीं गिराएंगे।" मुमताज़ बेगम बोलीं
"लेकिन यह आपकी भलाई के लिए है, मुमताज बेगम।" बादशाह बोले
"नहीं! भले ही हमारी जान चली जाए पर यह बच्चा हम नहीं गिराने देंगे।" मुमताज़ बेगम बोलीं
"जैसी आपकी मर्ज़ी, मुमताज़।" बादशाह बोले
7 महीने बाद,
"बादशाह, मुमताज बेगम की गर्भावस्था इस बार भी नाजुक है। हमें नहीं पता की अब कौन बचेगा, मुमताज़ बेगम या बच्चा।" हाकिम साहिबा बोलीं
"कृपया ऐसा न बोलिए, हाकिम साहिबा... कुछ तो इसका इलाज होगा न।" बादशाह बोले
"इसका एक ही इलाज था... और वो अब नहीं हो सकता है बादशाह..." हाकिम साहिबा बोलीं
"अगर ऐसा कुछ हुआ तो मुमताज़ बेगम को ही बचाएगा।" बादशाह बोले
"हमारी पूरी कोशिश रहेगी, जहांपनाह।" हाकिम साहिबा बोलीं
17 जून 1631,
मुमताज़ बेगम के प्रसव का दिन।
(मुमताज़ बेगुक चिल्लाती हैं)
"कुछ नहीं, मुमताज बेगम। हिम्मत रखिए।" हाकिम साहिबा बोलीं
(मुमताज़ बेगम चिल्लाती हैं)
बच्चे की रोने की आवाज से बादशाह को थोड़ी राहत मिलती है।
"लड़की हुई है, मुमताज़ बेगम।" हाकिम साहिबा बोलीं
"हमारी... हमारी... गौहर।" मुमताज़ बेगम बोलीं और मरहूम हो गईं।
"नहीं... मुमताज बेगम... आंखें खोलिए।" हाकिम साहिबा बोलीं
लेकिन मुमताज़ बेगम मार चुकी थीं।
हाकिम साहिबा ने बाहर आकर बादशाह को बताया।
"बादशाह, यह लीजिए... बेटी हुई है... लेकिन..." हाकिम साहिबा बोलीं
"लेकिन क्या, हाकिम साहिबा?" बादशाह ने पूछा
"मुमताज़ बेगम अब इस दुनिया में नहीं रहीं।" हाकिम साहिबा बोलीं
"क्या? नहीं।" बादशाह ने कहा और रोने लगे
"उन्होंने इस बच्ची को एक नाम दिया है। गौहर।" हाकिम साहिबा बोलीं
बादशाह ने बच्ची को गोद में लिया।
"यह हमारी मुमताज़ की निशानी है... इसका नाम... गौहर आरा बेगम होगा।" बादशाह बोले
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Taj Mahal: दास्तान ए इश्क़
Historical Fictionयह कहानी ताज महल के निर्माण और उसके पीछे की कहानी के ऊपर आधारित है। इस कहानी का उद्देश्य किसकी भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है।