ताज महल

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अड़तीस साल की काम उम्र में मुमताज़ महल अल्लाह के पास चली गईं थीं। बादशाह उनके जाने से अत्यंत दुखी थे। ऐसा कहा जाता है की मुमताज़ महल को तीन बार दफनाया गया था। एक बार बुरहानपुर में, दूसरी बार यमुना नदी के किनारे ताज महल के बगीचे में और तीसरी बार ताज महल के अंदर।
"हम चाहते हैं की मुमताज़ को हम पहले बुरहानपुर में दफनाएं।" आसफ खान बोले
"जी... जी अब्बू।" बादशाह बोले
और ऐसा ही किया गया। मुमताज़ को बुरहानपुर के एक बगीचे में दफनाया गया।
"हम चाहते हैं की हम मुमताज़ के लिए एक मकबरा बनवाएं। जैसा की हमने उनसे वादा किया था। अब हमें लगता है की हमें वो वादा पूरा करने का समय आ गया है।" बादशाह बोले
"कैसा मकबरा, बादशाह?" महाबत खान ने पूछा
"एक महल। उसके लिए हम चाहते हैं की राजपुताना के मकराना से संगमरमर पत्थर लाए जाएं। और तुर्किए, फारस, अल जज़ीरा, बेबीलोन और कई जगहों से वास्तुकारों को बुलाया जाए। और कई सारे बेशकीमती पत्थर और हीरे जवाहरात लाए जाएं। ताकि हम एक खूबसूरत मकबरा बनवा सकें।" बादशाह बोले
"जी बादशाह, हुक्म की तामील होगी।" महाबत खान बोले
मुमताज़ की मौत के बाद बादशाह बड़े ही सहम गए थे। जहांनारा बेगम में उनको मरहूम मलिका ए हिंदुस्तान, मुमताज़ बेगम दिखाई देती थीं। ऐसा कहा जाता है की इस वजह से उन्होंने अपनी खुदकी बेटी से शादी कर ली थी, लेकिन इसका कोई प्रमाण नहीं है।
"जहांपनाह, हम इसका नाम क्या रखेंगे?" एक कारीगर ने पूछा
"हम यह मुमताज़ महल के लिए बनवा रहे हैं तो इसका नाम ताज महल होगा।" बादशाह बोले
"जैसी आपकी मर्ज़ी बादशाह। इस मकबरे का नाम ताज महल ही होगा।" कारीगर बोला
"अब्बू, हमारे सारे भाई तख्त के लिए लड़ने पर उतर आए हैं। वह सब आपके इस सहमेपन का फ़ायदा उठा लेंगे।" जहांनारा बेगम बोलीं
"हमें जिसका डर था वही हुआ है। यह सब हमारी, शहरयार की और खुसराऊ भाईजान की रह पर चलना शुरू कर दिए हैं। हमारे समझाने का कुछ भी फ़ायदा नहीं हुआ है।" बादशाह बोले
"आपको जल्द ही वापस ताक़त में आना होगा, अब्बू।" जहांनारा बेगम बोलीं
"हमारी सारी औलादों को हमारे सामने पेश किया जाए।" बादशाह बोले
बादशाह की सारी संतानें उनके सामने खड़ी थीं। परहेज बानो बेगम जो उनकी पहली औलाद थीं वह भी। मुमताज बेगम की 14 संतानों में से सिर्फ 8 संतानें ही जी पाई थीं। उनमें थे, जहांनारा बेगम, हीर उल निस्सा बेगम, दारा शिकोह, औरंगजेब, शाह शूजा, मुराद बख्श, रोशनारा बेगम और गौहर आरा बेगम।
"हमने आप सबको यहां इसलिए बुलाया है ताकि हम अपने सच्चे उत्तराधिकारी को चुन लें। उससे पहले हम कुछ कहना चाहते हैं।" बादशाह बोले
"जी जहांपनाह, बोलिए।" परहेज़ बानो बेगम बोलीं
"ऐसे तो हमारी सबसे बड़ी औलाद होने के नाते परहेज़ बानो बेगम को हमारा उत्तराधिकारी होना चाहिए, लेकिन जैसा की सबको पता है की एक महिला तख्त पर नहीं बैठ सकती है, तो हम अपने चारों बेटों को एक चुनौती देना चाहते हैं। जो उस चुनौती पर खरा उतरेगा, वही इस तख्त का असली वारिस होगा।" बादशाह बोले
"लेकिन बादशाह, यह आप क्या कर रहे हैं? आप जानते हैं की आपके दादाजान ने भी ऐसा ही किया था और क्या क्या नहीं हुआ था, यह सब जानते हुए भी?" आसफ खान ने पूछा
"जी हां, वजीर ए आला। हमको पता है, लेकिन अगर हमने आगे होके किसी एक वारिस की चुना तो बाकी के बचे हुए कहेंगे की 'अब्बू ने पक्षपात किया है' और ऐसा हम नहीं चाहते हैं।" बादशाह बोले
"अब्बू, हम ऐसा कुछ नहीं करेंगे।" दारा शिकोह बोले
"हम आप सबको बहुत अच्छे से जानते हैं, शहजादे दारा। मुगलिया खून में कुछ ऐसा है ही की अपने अब्बू का फ़ैसला कभी किसीको गवारा नहीं था।" बादशाह बोले
"पर आपको था, अब्बू।" परहेज़ बानो बेगम बोलीं
"हम मुस्तसना थे।" बादशाह बोले
"हम आप ही के बच्चे हैं, अब्बू।" औरंगजेब बोले
"आप हमारे बच्चे हैं, हम जानते हैं, शहजादे औरंगजेब। लेकिन हम चाहते हैं की आप सब हमको साबित करके दिखाएं की आप सब में से किसमे बादशाह बनने की खूबियां हैं।" बादशाह बोले
"जैसी आपकी आज्ञा, अब्बू।" शाह शूजा बोले
"सभा बर्खास्त हुई।" बादशाह बोले
साल 1632 में ताज महल बनना चालू हुआ और उसी महीने, बादशाह ने मुमताज़ महल की लाश को जैनाबाद बगीचे, बुरहानपुर से ताज महल के प्रांगण के एक बगीचे में दफनाने का हुक्म दे दिया था। उनकी लाश को एक सुनहरे ताबूत में लाया गया और उनको बा-इज्जत यमुना के किनारे एक बगीचे में दफना दिया था। जब 1653 में ताज महल का काम ख़त्म हुआ, तब उनकी वापस बा-इज्जत ताज महल के अंदर बीचो बीच, दफनाया और वहा से वापस कभी भी नहीं हिलाया। ताज महल बड़ा ही सुन्दर और हंस जैसा सफेद था।  ऐसा माना जाता है की बादशाह शाह जहां ने अपने लिए काला ताज महल बनवाने की ख्वाहिश रखी थी लेकिन उससे पहले ही 1658 में उनके छोटे बेटे औरंगजेब ने उनके खिलाफ़ बगावत कर दी थी और उनको कैद करके काल कोठरी में डाल दिया था। जहांनारा बेगम ने औरंगजेब को एक मशवरा दिया था की हिंदुस्तान के चार टुकड़े कर दिए जाएं और एक-एक टुकड़ा चारों भाइयों में बात दिए जाएं लेकिन औरंगजेब को यह कुबूल नहीं था और उन्होंने अपने तीनों भाइयों को मारने का हुक्म दे दिया था जिसमे सबसे पहले उन्होंने 1658 में दारा शिकोह को मारा और फिर साल 1661 के शुरुआत में अपने दूसरे भाई शाह शूजा और फिर 1661 के ही अंत में अपने तीसरे और आखरी भाई मुराद बख़्श को भी मार दिया था।
शाह जहां की अपने लिए काला ताज महल बनवाने की ख्वाहिश कभी पूरी नहीं हो सकी और जब उनकी मृत्यु हुई तो उन्हे भी बा-इज्जत उनकी मरहूम बीवी, मुमताज़ महल के साथ ताज महल में दफना दिया था। मुमताज़ महल किसाबसे बड़ी बेटी, जहानारा बेगम शाह जहां के अखरी समय तक उनके साथ रही, उनकी सेवा करती रहीं, वह भले ही औरंगजेब के सभा में मुख्य सलाहकार थीं लेकिन वह अपने अब्बू के अखरी समय तक उनके साथ काल कोठरी में रहीं और जब उनके अब्बू की मृत्यु हुई तो सबसे ज्यादा दुखी भी वही थीं। बादशाह शाह जहां ने केवल ताज महल ही नहीं बल्कि उन्होंने दिल्ली का लाल किला, जामा मस्जिद, आगरा का किला, आगरा की जामा मस्जिद और मोती मस्जिद भी बनवाए।

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