Verse 33

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Sanskrit Verse -

तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व
जित्वा शत्रून्भुङ् क्ष्व राज्यं समृद्धम् |
मयैवैते निहता: पूर्वमेव
निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन् || 33||

tasmāt tvam uttiṣhṭha yaśho labhasva
jitvā śhatrūn bhuṅkṣhva rājyaṁ samṛiddham
mayaivaite nihatāḥ pūrvam eva
nimitta-mātraṁ bhava savya-sāchin

Word by word meaning -

tasmāt—therefore; tvam—you; uttiṣhṭha—arise; yaśhaḥ—honor; labhasva—attain; jitvā—conquer; śhatrūn—foes; bhuṅkṣhva—enjoy; rājyam—kingdom; samṛiddham—prosperous; mayā—by me; eva—indeed; ete—these; nihatāḥ—slain; pūrvam—already; eva nimitta-mātram—only an instrument; bhava—become; savya-sāchin—Arjun, the one who can shoot arrows with both hands

तस्मात्-अतएव; त्वम्-तुम; उत्तिष्ठ-उठो; यशः-लभस्व-प्राप्त करो; जित्वा-विजयी होकर; शत्रून्-शत्रुओं को; भुड़क्ष्व-भोग करो; राज्यम्-राज्य का; समृद्ध-धन-धान्य से सम्पन्न मया मेरे द्वारा; एव-निश्चय ही; एते-ये सब; निहता:-मारे गये; पूर्वम्-एव-पहले ही; निमित्त-मात्रम्-केवल कारण मात्र; भव–बनो; सव्य-साचिन्–दोनों हाथों से बाण चलाने वाला अर्जुन।

English Translation -

Therefore, arise and attain honor! Conquer your foes and enjoy prosperous rulership. These warriors stand already slain by Me, and you will only be an instrument of My work, O expert archer.

Hindi Translation -

इसलिए उठो युद्ध करो और यश अर्जित करो। अपने शत्रुओं पर विजय पाकर समृद्ध राज्य का भोग करो। ये सब योद्धा पहले ही मेरे द्वारा मारे जा चुके हैं। हे श्रेष्ठ धनुर्धर! तुम तो मेरे कार्य को सम्पन्न करने का केवल निमित्त मात्र हो।

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