मुझमें ही मेरा कोई कैद हैं।
शायद वो मेरा बहुत अजीज है।
हंसता मुझमें रोता मुझमें, मेरे जैसा ही अजीब है।
मुझमें ही मेरा कोई कैद हैं।
ना कहता है, ना सुनता है।
बस अंदर ही अंदर ख़्वाब बुनता है।
ना चलता है, ना ठहरता है।
ना जाने अंदर वो क्या करता है।
मेरे जैसा ही मेरे अन्दर कोई रहता है।
कहूं अगर उसे बाहर आने की,
तो किसी कोने में जा छिपता है।
मुझमें ही मेरा कोई कैदी रहता है।
करू अगर उससे बाते तो बहुत ही बतलाता है।
अजनबियों के सामने बहुत ही शर्माता है।
कभी खुद हंसता तो कभी खूब हंसता है।
कभी सुनकर अपनी कहानियां को बहुत ही रुलाता है।
छोटी - छोटी सी बातो पर हर दम खिलखिलाता है।
आंखों में दर्द लेके लवो से मुस्कुराता है।
मुझमें ही मेरा कोई कैदी रहता है।
हर दिन सजा वो पता, हर दिन कुछ नया सुनाता है।
मुझमें ही मेरे जैसा कोई कैदी रहता है।
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अनकहे लफ्ज़,,,,,,,
Poetryअनकहे लफ्ज़ जो एहसासों से भरें है। कुछ जुड़े, कुछ टूटे बिखरे पड़े हैं। कुछ अपने है, कुछ तुम्हारे वो अल्फाज़ जो आंशुओ में भरे हैं। ना किसी ने सुने न किसी ने कहे हैं। अनकहे से लफ्ज़,,,,,,,,,,,,